Swami Avimukteshwaranand Ji : बेबाक अंदाज के धनी ज्योतिष पीठ मठ के शंकराचार्य का जन्म उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के ब्रह्मणपुर गाँव में हुआ है। छात्र राजनीति से शंकराचार्य का सफर इन्होंने तय किए हैं। वे एक सम्मानित और प्रभावशाली संत हैं, जो हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। स्वामी जी ने शंकराचार्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारतीय वेद, दर्शन और अध्यात्म के महत्व को फैलाने का कार्य किया है।स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का ज्ञान और उनकी शिक्षाएं लाखों अनुयायियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं। वे अपने आचार्यत्व में साधना, वेद और शास्त्रों का प्रचार करते हुए धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी छात्र राजनीति में सक्रिय रहे ।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी के जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने छात्र राजनीति में भी भाग लिया था। यह पहलू उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें वे समाज के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत रहे थे।
उनका छात्र राजनीति से जुड़ाव उस समय हुआ जब वे राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की दिशा में अपनी भूमिका निभाने की सोच रखते थे। स्वामी जी ने छात्र राजनीति के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास किया और उनका यह कार्य बहुत ही प्रभावशाली था। वे एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो छात्र वर्ग को न केवल उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करते थे, बल्कि समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाते थे।
स्वामी जी की छात्र राजनीति के दिनों में उनकी मुख्य चिंता समाज की कल्याणकारी दिशा में सुधार करना और धार्मिक, सांस्कृतिक मूल्य को मजबूत बनाना था। छात्र राजनीति में उनकी सक्रियता ने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी एक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में स्थापित किया।
हालाँकि, एक समय बाद स्वामी जी ने राजनीति से दूर रहकर धार्मिक जीवन को प्राथमिकता दी और उन्होंने अपना जीवन आध्यात्मिक उन्नति और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया। वे शंकराचार्य के रूप में अपनी भूमिका में केंद्रित हो गए और उन्होंने ज्योतिष पीठ मठ के माध्यम से धर्म, तात्त्विक ज्ञान और सामाजिक उत्थान के कार्य में अपना योगदान दिया।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी का जीवन एक उदाहरण है कि एक व्यक्ति राजनीति और समाज सेवा में सक्रिय रहते हुए, धर्म और आध्यात्मिक मार्ग को भी अपनाकर समाज के लिए योगदान दे सकता है।
Swami Avimukteshwaranand Ji का धार्मिक आंदोलन
1. धर्म का पुनर्निर्माण और प्रचार
स्वामी जी ने भारतीय समाज में धार्मिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए कई धार्मिक पाठशालाओं और संस्थाओं की स्थापना की। उनका उद्देश्य था लोगों को वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता, और अन्य धार्मिक ग्रंथों के महत्व से परिचित कराना। उन्होंने यह भी सिखाया कि इन ग्रंथों का सही अध्ययन न केवल आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता खोलता है, बल्कि यह समाज में नैतिकता, आदर्श और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है।
2. आध्यात्मिक जागरूकता
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी का ध्यान सिर्फ धार्मिक आस्थाओं को बढ़ाने पर नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज में आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने के लिए कई पहल कीं। उन्होंने युवाओं को जीवन के उद्देश्य और मानवता के आदर्शों के बारे में सिखाया। उनका मानना था कि आध्यात्मिक शिक्षा न केवल व्यक्ति को आत्मज्ञान तक पहुंचाती है, बल्कि उसे समाज के प्रति जिम्मेदार और संवेदनशील भी बनाती है।
3. हिंदू धर्म की एकता और अखंडता का प्रचार
स्वामी जी का मानना था कि हिंदू धर्म में एकता और अखंडता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिंदू समाज में व्याप्त विभिन्न मत मतांतरों और संघर्षों को समाप्त करने के लिए धार्मिक एकता और संप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि हिंदू धर्म की असली ताकत उसकी विविधता में एकता में है।
4. सामाजिक उत्थान
स्वामी जी का ध्यान केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने सामाजिक उत्थान के लिए भी कई कदम उठाए। उन्होंने समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास की दिशा में कार्य किया। वे चाहते थे कि धर्म और आध्यात्मिकता केवल पूजा-अर्चना तक ही सीमित न रहकर, समाज के हर व्यक्ति के जीवन में प्रभाव डालें।
5. शंकराचार्य परंपरा का संवर्धन
स्वामी जी ने शंकराचार्य की परंपरा को पुनर्जीवित किया और इसे समाज के लिए प्रासंगिक बनाने का कार्य किया। उन्होंने भारतीय दर्शन और तात्त्विक शिक्षा को सामान्य जनता तक पहुंचाने के लिए कई कार्य किए। वे शंकराचार्य के आदर्शों को फैलाते हुए, अद्वैत वेदांत की शिक्षा को अधिक प्रभावी और व्यापक रूप से प्रसारित करने में लगे रहे।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का धार्मिक आंदोलन न केवल धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए था, बल्कि उन्होंने समाज में एकता, अहिंसा, और आत्मसमर्पण के आदर्शों को फैलाने के लिए भी संघर्ष किया। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का ज्ञानवापी आंदोलन

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने ज्ञानवापी मस्जिद के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन की अगुवाई की है, जो भारतीय हिंदू समाज के धर्म, संस्कृति और धार्मिक स्थलों की रक्षा से संबंधित था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर स्थित शिवलिंग की पूजा और उसे पुनः हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए खोलने से जुड़ा था।
ज्ञानवापी मस्जिद आंदोलन
ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी (काशी) में स्थित है, और यह हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण स्थानों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित है। हिंदू मान्यता के अनुसार, इस स्थल पर शिव का अत्यंत पवित्र शिवलिंग स्थापित है। हालांकि, जब मुग़ल सम्राट और आक्रांता औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था, तो यहां एक मस्जिद का निर्माण किया गया। इस कारण यह स्थल सदियों से विवादों और संघर्षों का केंद्र बना हुआ है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने इस मस्जिद के भीतर मौजूद शिवलिंग की पूजा और धार्मिक अधिकार की पुनः स्थापना के लिए जोरदार अभियान शुरू किया। उनका उद्देश्य था कि हिंदू समाज को अपने धार्मिक अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए और हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों पर उसकी उपासना का अधिकार सुनिश्चित किया जाए।
आंदोलन के प्रमुख बिंदु:
- ज्ञानवापी शिवलिंग की पूजा: स्वामी जी ने यह दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर स्थित शिवलिंग हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक प्रतीक है और इसका पुनर्निर्माण तथा पूजा का अधिकार हिंदू समाज का है। उनका मानना था कि इस पवित्र स्थल पर हिंदू समुदाय को पूजा-अर्चना करने का अधिकार मिलना चाहिए।
- संविधानिक और कानूनी संघर्ष: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने इस आंदोलन को संविधान और कानूनी ढांचे के भीतर रहते हुए चलाया। उन्होंने यह कहा कि भारतीय संविधान सभी धर्मों को समान अधिकार प्रदान करता है, और इसलिए हिंदू समाज को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने का पूरा अधिकार है।
- सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा: स्वामी जी का यह आंदोलन केवल एक स्थल पर पूजा की अनुमति देने से संबंधित नहीं था, बल्कि यह एक बड़े सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा के संदर्भ में था। वे चाहते थे कि भारत के हिंदू समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का संरक्षण किया जाए और किसी भी बाहरी आक्रमण या अन्याय से उनकी धार्मिक स्थलों की पवित्रता की रक्षा की जाए।
- संप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे का संदेश: स्वामी जी ने इस आंदोलन में धार्मिक और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने पर जोर दिया। उनका मानना था कि इस प्रकार के आंदोलनों को शांति और सम्मान के साथ किया जाना चाहिए ताकि समाज में किसी प्रकार की हिंसा या असहमति न हो।
आंदोलन की प्रतिक्रिया
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का ज्ञानवापी मस्जिद आंदोलन हिंदू समाज में एक महत्वपूर्ण विषय बन गया। कई धार्मिक नेता और समाजसेवी इस आंदोलन से जुड़ने के लिए आगे आए। साथ ही, इस आंदोलन ने देशभर में हिंदू समाज को अपने धार्मिक अधिकारों के प्रति जागरूक किया और कई अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर भी जागरूकता बढ़ाई।
यह आंदोलन कई कानूनी और सामाजिक पहलुओं से भी जुड़ा हुआ था, जिसमें मंदिरों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों के इतिहास और धार्मिक महत्व को पुनः स्थापित करने के लिए कानूनी प्रयास किए गए थे।
Cow Protection Law : गाय संरक्षण कानून स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने गाय संरक्षण के मुद्दे पर भी सक्रिय रूप से आवाज उठाई और इस विषय पर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक आंदोलन चलाया। वे गाय को भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा मानते थे और उनका यह विश्वास था कि गाय का संरक्षण केवल एक धार्मिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि यह सामाजिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।
स्वामी जी ने गाय संरक्षण कानून (Cow Protection Law) के पक्ष में कई बार अपनी आवाज बुलंद की। उनका मानना था कि गाय भारतीय समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और उसे संविधानिक और कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए। वे चाहते थे कि भारतीय संविधान और कानून गाय को एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में पहचानें और उसे किसी भी प्रकार के शोषण या क्रूरता से बचाया जाए।
गाय कानून आंदोलन के प्रमुख पहलु:
सरकारी स्तर पर कदम उठाने की मांग:
स्वामी जी ने सरकार से यह मांग की थी कि वह गाय के संरक्षण के लिए एक सशक्त और स्पष्ट कानून बनाए, जिसमें गाय के वध पर प्रतिबंध और उसकी रक्षा के लिए अन्य आवश्यक उपायों को सुनिश्चित किया जाए। उनका यह मानना था कि यह कदम न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से जरूरी था, बल्कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिहाज से भी गाय की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।
गाय को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में मान्यता: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी का यह कहना था कि गाय भारतीय संस्कृति, धर्म और आस्थाओं का एक अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने गाय को धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक पवित्र माना और इसके संरक्षण को आवश्यक समझा। उनका यह विचार था कि गाय को एक राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार करना चाहिए और उसे विशेष कानूनी सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
गाय की सुरक्षा के लिए कानून बनाना: स्वामी जी ने गायों के संरक्षण के लिए एक सख्त और प्रभावी कानूनी ढांचा बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि अगर गायों की रक्षा के लिए स्पष्ट और कठोर कानून होंगे, तो भारतीय समाज में इसके प्रति जागरूकता बढ़ेगी और हर व्यक्ति गायों की सुरक्षा की जिम्मेदारी समझेगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण: स्वामी जी का कहना था कि गाय का संरक्षण केवल एक पशु के रूप में नहीं, बल्कि यह भारतीय धर्म, संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का मुद्दा भी है। उनके अनुसार, गाय की पूजा और उसकी रक्षा हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है। इसलिए, यह जरूरी था कि गाय को धर्म और संस्कृति के प्रतीक के रूप में बचाया जाए।
गाय के साथ क्रूरता के खिलाफ लड़ाई: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने गायों के साथ होने वाली क्रूरता, विशेष रूप से उनकी वध के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने यह कहा कि गायों के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा, शोषण और क्रूरता न केवल धर्म के खिलाफ है, बल्कि यह समाज के लिए भी घातक है। वे गायों को शारीरिक और मानसिक पीड़ा से बचाने के लिए कानून बनवाने की मांग कर रहे थे।
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